महवंश श्रीलंका का चर्चित भारत के इतिहास को लेकर पाली भाषा के बौध्द ग्रंथ है।
बौध्द ग्रंथ महावंश के उत्तरविहारट्ठकथा मे ही स्पष्ट दर्ज है कि चाणक्य नामक के एक ब्राह्मण थे और चन्द्रगुप्त मौर्य क्षत्रिय थे।इसके भारतीय संस्करण के अनुवादक बौद्ध भिक्षु भंते आनंद कौश्लयायन महाथेरो जी भी है।
निस्संदेह यह श्रीलंका का बहुत ही प्रसिद्ध ऐतिहासिक ग्रन्थ है जिसमें भारत का इतिहास भरा पड़ा है,
भारत के इतिहास की सर्वाधिक सारांश इसी ग्रंथ पर आधारित है इतिहासकारों ने यहीं से संदर्भ उठाकर भारतीय इतिहास को एक नई दिशा देने की भरपूर प्रयास किया है।
महावंश के प्रमुख सूत्रों में से एक सूत्त पर नजर डालते है तो हम पाते है -
मोरियान खत्तियान वसजात सिरीधर|
चन्दगुत्तो ति पञ्ञात चणक्को ब्रह्मणा ततो||१६|
नवामं घनान्दं तं घातेत्वा चणडकोधसा|
सकल जम्बुद्वीपस्मि रज्जे समिभिसिच्ञ सो||१७||
जिसका अर्थ है कि मौर्यवंश नाम के क्षत्रियों में उत्पन्न श्री चंद्रगुप्त को चाणक्य नामक ब्राह्मण ने नवे घनानंद को चन्द्रगुप्त के हाथों मरवाकर संपूर्ण जम्मू दीप का राजा के रूप राज्याभिषेक किया।