भगवान बुद्ध जब घर छोड़कर सन्यास लेने के लिये जा रहे थे, तब उन्होने वादा किया था कि एक बार कपिलवस्तु लौटकर वह जरूर आयेंगे। अपने इसी वचन को पूरा करने के लिये बुद्ध उस समय वापस कपिलवस्तु आये थे , जब उनके छोटे भाई नन्द का विवाह और राज्याभिषेक होने वाला था।
बुद्ध कपिलवस्तु आये जरूर, पर उन्होने महल मे जाने के बदले बगीचे मे ही ठहरना उचित समझा। उनके पिता और छोटे भाई नन्द उनसे मिलने बगीचे मे ही आये। कुछ दिन बगीचे मे ठहरने के बाद जब बुद्ध वापस बौद्धमठ मे जाने लगे, तब उनका छोटा भाई नन्द उन्हे विदा करने आया! बुद्ध ने जैसे ही छोटे भाई को देखा, उसे अपना भिक्षापात्र पकड़ा दिया।
नन्द भी कटोरा लेकर बुद्ध के पीछे-पीछे चलने लगे। नन्द ने सोचा कि थोड़ी दूर जाने पर बुद्ध उससे कटोरा ले लेंगे, और वह वापस महल लौट जायेगा। पर बुद्ध ने ऐसा किया नही.. और नन्द भिक्षापात्र पकड़े हूए बुद्ध के पीछे-पीछे विहार तक पहुँच गया।
जब नन्द बुद्ध को विदा करने के लिये जा रहा था, तब उसकी सुन्दर पत्नि ने उससे निवेदन किया था कि प्रियतम् शीघ्र वापस आ जाना।
बुद्ध ने नंद से पूँछा "क्या तुम प्रव्रजित (सन्यासी) होंगे?"
नन्द यह सुनते ही स्तब्ध हो गया, उसने इस स्थिति की कल्पना भी नही की थी! वह असमंजस मे पड़ गया और हड़बड़ाहट मे उसके मुँह से 'हाँ' निकल गया।
बेचारा नन्द.... जो शीघ्र ही राजा बनने वाला था! जिसका विवाह होने वाला था, और जिसकी पत्नि महल मे उसकी राह देख रही थी, बुद्ध ने उसका मुण्डन करके उसके हाथ मे भीख का कटोरा पकड़ा दिया।
नन्द अनिच्छा से ही सही, पर बुद्ध के सम्मान मे भिक्षु तो बन गया, पर उसका मन सदैव अपनी होने वाली पत्नि की याद मे ही लगा रहता था। न तो वह भिक्षा मांगने जाता था और न ही विहार के किसी काम मे हाथ बटाता था! बस सदैव गुमगुस पत्नि के ख्यालों मे खोया रहता था।
नन्द की स्थिति के बारे मे जब बुद्ध को पता चला तो वे एक दिन नन्द को लेकर ऐसी जगह गये, जहाँ बहुत सुन्दर-सुन्दर लड़कियाँ थी।
बुद्ध ने नन्द से पूँछा "नन्द! क्या ये सुन्दरियाँ तुम्हे चाहिये?"
नन्द शान्त रहा.. और कुछ उत्तर नही दिया।
फिर बुद्ध बोले "यदि तुम ब्रह्मचर्य का पालन करोगे, ध्यान लगाओगे, और मेरे बताये मार्ग पर चलोगे तो मै तुम्हे ये सुन्दरियाँ दिला दूँगा"
बुद्ध की बात सुनने के बाद नन्द के मन मे सुन्दरियों का लालच आ गया, और वह अपनी पत्नि को भूलकर ध्यान लगाने लगा! अब दूसरे भिक्षु उसे चिढ़ाते भी थे कि नन्द सुन्दरियों के लालच मे ध्यान लगाता है, पर नन्द का मन आखिरकार सन्यास मे रम ही गया।
इस कहानी को बताने का मेरा तात्पर्य यह है की लोग कहते हैं कि बौद्ध धर्म दुनिया मे अपनी शान्ति, करुणा और समानता की वजह से फैला, लेकिन उन्हे पता होना चाहिए कि बुद्ध ने अपनी सगे भाई को कैसे बौद्ध बनाया था।
संदर्भ-त्रिपिटक (धम्मपद, वग्ग-1/13-14)