गौतम बुद्ध के समय मे ही कौसल नामक राज्य मे प्रसेनजित नाम का राजा राज्य करता था, जो बुद्ध का अनन्य अनुयायी भी था।
प्रसेनजित का विवाह एवं धोखा -
प्रसेनजित ने एक बार सोचा कि यदि मै शाक्यकुल की किसी लड़की से विवाह कर लेता हूँ तो बुद्ध के साथ मेरा संबंध और भी मजबूत हो जायेगा, वे मेरे सम्बन्धी भी बन जायेंगे, जो मेरे लिये सम्मान एवं गौरव की छड़ होगा ।
यह बात मन मे सोचकर प्रसेनजित ने अपने दूत से विवाह का प्रस्ताव कपिलवस्तु के शाक्यों के पास भेज दिया।
जब शाक्यों को यह सूचना मिली की कौसलराज किसी शाक्य-कन्या से विवाह करने के इच्छुक है, तो शाक्यों ने आपस मे विचार- विमर्श किया।
उनमे से कुछ बृद्ध शाक्यों ने कहा कि हमारा वंश कौशलराज के कुल से श्रेष्ठ है, अतः हमे प्रसेनजित से किसी भी प्रकार के विवाह को स्वीकार नहीं करना चाहिए और ऐसा ही किया और फैसला किया की हम किसी भी शाक्य कन्या का विवाह उनसे नही करेंगे।
लेकिन प्रसेनजित एक ताकतवर राजा भी था, शाक्य लोग उसे नाराज भी नहीं करना चाहते थे । काफी सोचकर- समझकर शाक्यों ने सीधे मना करके उससे अपने अस्तित्व पर खतरा- मोल लेना उचित भी नही समझा।
फिर उन्होने एक योजना बनायी। एक शाक्य पुरुष जिसने अपनी दासी से अनैतिक सम्बन्ध बना रखा था, उसी दासी से एक पुत्री पैदा हुई थी।
उसी दासी-पुत्री का विवाह प्रसेनजित से यह झूठ बोलकर कर दिया कि यह शाक्य कन्या है।
राजा प्रसेनजित इस बात से अनभिज्ञ था, और उसने दासी-पुत्री को शाक्य-कन्या अर्थात बुद्ध के कुल का समझकर ही विवाह कर लिया ।
विडूडभ की कथा -
कुछ समय व्यतीत होने के बाद प्रसेनजित को उस दासी-कन्या से एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई , जिसका नाम उसने "विडूडभ" रख दिया ।
विडूडभ जब थोड़ा बाद एवं समझदार हुआ तब उसने अपनी माँ से अपने ननिहाल जाने की इच्छा जतायी, विडूडभ की माँ चिंतित हो गई।
उसने सोचा कि यदि विडूडभ कपिलवस्तु चला जायेगा तो कहीं यह झूठ खुल न जाये कि मै शाक्य पुत्री नही, अपितु दासी-पुत्री हूँ! मन मे ऐसा विचार आते ही उसकी माँ ने विडूडभ को यह कहकर मना कर दिया कि ननिहाल बहुत दूर है, अतः अभी तुम वहाँ मत जाओ।
लेकिन जब विडूडभ 16 वर्ष का लगभड़ हो गया तो तब उसने फिर से ननिहाल जाने विचार बनाया! फिर उसकी माँ ने इस बार भी तरह-तरह के बहाने किये,लेकिन विडूडभ नहीं माना, और अन्ततः अपने ननिहाल कपिलवस्तु पहुँच गया।
ननिहाल आने पर विडूडभ का न तो राजकुमारों जैसा स्वागत हुआ और न ही ठहरने के लिये उचित व्यवस्था की गई । इसके विपरीत विडूडभ जिस आसन पर बैठता था, एक दासी आकर उसे धो देती थी।
विडूडभ जिस बिस्तर पर सोता था, उसे बाद मे दासी साफ कर देती थी। ऐसा अछूत-पूर्ण व्यवहार देखकर विडूडभ को बहुत आश्चर्य सा लगता था।
विडूडभ क्रोधित क्यों हुआ ?
एक दिन विडूडभ के एक अंगरक्षक ने उसी दासी को यह बोलते हुये सुन लिया कि "पता नही यह दासी-पुत्री का बेटा कब यहाँ से जायेगा! यह जहाँ ठहरता है मुझे वहाँ सफाई करनी पड़ती है, और इसकी वजह से मेरा श्रम बढ़ गया है"
अंगरक्षक यह सुनकर अवाक् रह गया, और उसने आकर सारी बात विडूडभ को बता दी।
इसके बाद तो विडूडभ को सारी सच्चाई समझ मे आ गई थी। विडूडभ समझ गया था कि उसके पिता के साथ शाक्यों ने छल किया था, धोखे से एक दासी-पुत्री का विवाह राजा प्रसेनजित् के साथ कर दिया था, अर्थात उसकी माँ शाक्य नहीं है ,
विडूडभ क्रोधित हो गया, और तत्काल ही कौसल वापस लौट आया। बाद मे जब विडूडभ कौसल का राजा बना तो उसने अपने अपमान और अपने पिता के साथ हुये छल का बदला लेने के लिये शाक्यों के सम्पूर्ण विनाश की प्रतिज्ञा कर लिया।
विडूडभ की सेना का शाकयो पर हमला -
तुरंत विडूडभ एक विशाल सेना लेकर शाक्यों पर हमला करने निकल पड़ा! पर किसी ने यह बात जाकर बुद्ध को बता दी,अब जैसे ही यह सूचना बुद्ध को मिली तो वे तुरंत विडूडभ के पास पहुँचे और उन्होने विडूडभ को मार्ग मे ही रोक लिया।
बुद्ध ने विडूडभ को अपनी दीक्षा तथा गुरू-परम्परा का सौगंध देकर समझाया-बुझाया और उसे मार्ग से ही वापस राजधानी लौटा दिया।
विडूडभ बुद्ध के समझाने से वापस तो लौट गया, पर शाक्यों पर उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ। थोड़े दिनों के उपरान्त विडूडभ का गुस्सा फिर जग गया . उसने फिर अपनी सेना लेकर शाक्यों पर चढ़ाई कर दी।
बुद्ध भी यह समझ चुके थे कि विडूडभ अपने अपमान की अग्नि मे जल रहा है, और इस आग की लपटें फिर से जरूर धधकेंगी! अतः बुद्ध को विश्वास था कि भविष्य मे कभी न कभी विडूडभ फिर से आक्रमण जरूर करेगा... इसीलिये उन्होने अपने शिष्यों को विडूडभ पर नजर रखने के लिये महल के आस-पास रहने का आदेश दे रखा था। उन्ही गुप्तचर शिष्यों ने पुनः आकर बुद्ध को जानकारी दिया कि आपका शिष्य आपके कुल का विनाश करने के लिये फिर से जा रहा है।
बुद्ध फिर गिरते-भागते विडूडभ के पास आये, और उसे समझाने लगे। पर विडूडभ एक नही मान रहा था.. फिर बुद्ध ने विडूडभ से कहा कि यदि तुम्हे शाक्यों को मारना है तो मेरे ऊपर से सेना लेकर जाओ, क्योंकि मै भी तो एक शाक्य ही हूँ।
बुद्ध के ऐसा कहने पर विडूडभ फिर से सेना के साथ राजधानी वापस लौट आया!
इसी तरह तीन बार बुद्ध विडूडभ की सेना और कपिलवस्तु के बीच खड़े हुये और विडूडभ लौट गया। लेकिन कुछ महीनों बाद विडूडभ ने चौथी बार निश्चिय किया कि शाक्यों को मारना ही पड़ेगा! और उसने ठान लिया कि यदि इस बार बुद्ध भी बीच मे आये तो सबसे पहले उन्हे ही मार दूँगा।
अप्प दीपो भव -
बुद्ध को भी किसी शिष्य ने जानकारी दिया कि विडूडभ अपनी सेना के साथ पुनः शाक्यों को मारने जा रहा है, और उसने निश्चय किया है कि यदि आप अबकी बार बीच-बचाव करने गये तो सबसे पहले आपको ही मार डालेगा।
बुद्ध डर गये... तथाकथित शान्ति के मसीहा ने बीच मे आने से खुद को रोक लिया! और पिता के साथ हुये छल से क्रोधित हुये विडूडभ ने बुद्ध के खानदान के साथ-साथ समस्त शाक्यों का विनाश कर दिया।
लोग कहते है कि बुद्ध के संदेश दुनिया मे शान्ति स्थापित कर सकते हैं! पर स्वयं बुद्ध अपने समय एक राजा को अपने ही कुल का रक्तपात करने से नहीं रोक सके।
शायद इसीलिए कहा होगा अपना दीपक स्वयं बनो ,अर्थात मै शाकयों को नहीं बचा सका था ,शाक्य स्वयं चाहते तो खुद के वंश को बचा लेते , इसलिए हमारे या किसी के भरोसे मत बैठो ।
संदर्भ-डी.डी. कोसम्बी के साहित्य, एवं धम्मपद वग्ग-4 / गाथा-4